फेल आशिक
फेल आशिक
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मटकती मटकती चली आ रही थी,
दीवाने दिल को बड़ी भा रही थी,
हर एक कदम पर नज़ाकत थी भारी,
नज़र को झुकाए वो कमसिन कुँवारी,
तन्द्रा ज्यों टूटी और उतरी खुमारी,
आ पास जब टूटी चप्पल उतारी,
और कहा भैया जी मोची जरा बताओ,
मेरी जबर परेशानी को हल जल्दी
करवाओ,
बाय फ्रैंड से मिलने की है मुझ को
जल्दी भारी,
पैसे भी हैं नहीं जेब में दे दो कछु उधारी,
सर पर रखे पैर वहां से सरपट निकला भाग,
ऐसी कंगली ललनाओं से टूटा अपना राग