पेड़ मत काटो
पेड़ मत काटो
अपने स्वार्थ की खातिर तूने कितने पेड़ काट डाले।
काश सोच पाता तूने कितनों के नीड़ छीन डाले।
पंखी सुख से रहते थे यहाँ कलरव ध्वनि गूँजा करती थी।
पेड़ों की शीतल छाँव पथिक के हिय को शीतल करती थी।
पेड़ों पर लगे फूल और फल हम सबका पोषण करते हैं।
अपनी स्वार्थपूर्ति हित, हम सब इनका शोषण करते हैं।
वृक्षविहीन धरा पर जब सूरज आतप बरसायेगा।
पंछी का नीड़ कहाँ होगा और मनुज छाँव कहाँ पाएगा?
अभी समय है चेत जाओ वृक्षों को काटना बंद करो।
सौगन्ध खाओ तुम जीवन में कुछ पेड़ लगाना शुरू करो।