पाठ प्रकृति का
पाठ प्रकृति का
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यादों के झोले में पड़ी कुछ,
धुँधली सी तस्वीरें,
अनायास आँखो के सामने आ गई।
रोते हँसते, शरारत करते
खुद को देख।
यूं ही, मुस्कुराता हूं।
अंधी इस दौड़ में,
न जाने क्या पाने की होड़ में?
सांस लेने का वक़्त कैसे निकाला था,
एक दौर ऐसा भी जी डाला था।
करना मर्यादाओं को तार तार,
आदत, जो लत बन गई थी।
अब तू लक्ष्मण रेखा का,
सम्मान करना, बता रहा।
वाह रे covid ,तू जीना सीखा रहा।
