निज अभिमान
निज अभिमान
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रीति रिवाज़ की जकड़ में
जकड़ा हर इंसान
कारण केवल एक ही है
निज तन भरा अभिमान
रीति रिवाज़ों के चंगुल में
इंसान है घुट घुट जी रहा
कहीं पर है भुखमरी तो
कहीं अपमान के आँसू पी रहा
कब पनपेगा सौहार्द धरा पर
कब होगा उत्साह
रीति रिवाज़ों के ढकोसलो से
कब निकलेगा इंसान
हकीक़त तब बदल जायेगी
बदल जायेगा अंजाम
मुसाफिर जिस दिन मर गया
मानव का निज अभिमान
