नीरवता
नीरवता
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नीरवता के इन क्षणों में
ऐसा प्रतीत होता है मुझे
मानों मैं भटक रही हूँ
एक बीहड़ वन में
घिरी हुई हूँ कंटकों से चहुँ ओर
नहीं है कोई भी जो
उबार ले मुझे इस संकट से
जो पुकार ले मेरा नाम
और कर दे इस नीरवता को भंग
तरस जाती हूँ
मैं किसी आवाज हेतु
किन्तु यह नीरवता
बढ़ती ही जाती है
हृदय विदारक होती ही जाती है
भागती हूँ मैं इससे
एक भयभीत मृग समान
पर यह नीरवता
मुँह खोले बाघ के सामान
मेरा अनुसरण करती है
और मैं डूबती ही जाती हूँ
इस नीरवता में
जैसे तूफान में फंसी
एक कागज की नाव
कभी मैं तरसती थी
शांति के चंद पलों हेतु
परन्तु अब यह हृदय विदारक नीरवता
मानो मेरा हमसाया बन गयी है