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AMIT KUMAR

Others

5.0  

AMIT KUMAR

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नारी

नारी

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मैं रहूँ सदा मर्यादे में,

यह नियम किसने बनाया है,

क्या गलत किया था मैंने जो,

खुद को पर्दे में छुपाया है।


नारी होना गर गलत हुआ,

मां, बहन भी तो इक नारी है।

हर जन्म में मुझको सीता सा,

न अग्नि परीक्षा प्यारी है।


हर बार मुझे ही क्यूं सहना

पड़ता है सारे दम्भों को,

क्या समझ नहीं है इन सारे

धर्म के पहरेदारों को।


गर समझ रहे हो अबला हूँ

फिर तो यह भूल तुम्हारी है,

काली हूँ, चंडी, दुर्गा हूँ

यह भी इक रूप हमारा है।


जब भी कोई दुष्कर्म करे

तो मुझको ग़लत बताते हो,

क्या सिर्फ लिबास ही दिखता है,

मां, बहन को तुम बिसराते हो।


अब बहुत हुआ ये खेल तेरा

जो तुम सबने ये बनाया है,

गर रूप लिया चंडी का जो

संहार तुम्हारा साया है।


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