न छीन
न छीन
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हमसे हमारे ख्वाब न छीन
काँटों भरी गुलाब न छीन ।
जिंदा तो हूँ गफलत में सही
यादों की ये सैलाब न छीन ।
बेहद सुकून से रहते हैं यहाँ
सुखे फूलों से किताब न छीन ।
कुछ तो रहम कर मेरे खुदा
मेरे हिस्से की अज़ाब न छीन ।
कहने दे मुझे नाकाम आशिक़
रकीबों से मेरा खिताब न छीन ।
हक़ है उन्हें भी बात रखने का
मजलूमों से इंकलाब न छीन ।
नये दौर मे तरक्की है जाएज़
मगर बच्चों से आदाब न छीन ।
जिंदा रख अजय अपने को
खुद से दिले बेताब न छीन
