मुट्ठी से लुटा दिया
मुट्ठी से लुटा दिया
टप-टप बूँदें शोर मचाएँ
चप्पल पहने घन ज्यों भागे।
टर्र-टर्र की ध्वनियाँ काटे,
झींगुर की संग बोलियाँ।
पत्तों का वह फड़-फड़़ होना
चमगादड़ का फड़फड़ाना
धड़कन की भी गूँजे धक-धक
सन्नाटा क्या बोल रहा!
लिए चाँदनी बन बैठे हैं
भूत भयानक वृक्ष कई
पसर पड़ा सन्नाटा ही
या सन्नाटा है बोल रहा!
गरज पड़ा, घन बरस पड़ा है
तूफानों से उलझ पड़ा है
जब बरसे तूफान भी संग में
गरज पड़ा घन बरस पड़ा।
लुप्त हुए तारक समूह भी
जुगनूँ की चम-चम भी ग़ायब।
खड़ा हुआ जो फल देता है
पंछी को छाया देता है,
पीछे करने के मक़सद से
लंगी मार उसे भागे आगे,
मंज़िल क्या तूफान न जाने
अनजान बन दौड़ रहा।
तूफान भी दौड़ रहा है...
तूफान भी दौड़ रहा।
गहरी जिसकी जड़ है
जिसने अन्तर रस जाना
वह जीना है जाना,
वह जीवन है जाना।
पत्तों का वह फड़-फड़ होना
चमगादड़ का फड़फड़ाना
झींगुर ने भी चुप्पी साधी
उल्लू भी खामोश हुए
सूरज ने सिर से अपने
ज्यों घूँघट हटा लिया।
बालक की नौकायें बहती,
इंद्रधनुष दिखता सतरंगी।
पंछी के पंखों पर पसरी
मुक्ता रूपी बूँद ढुलकती,
पल्लव ने उन बूँदों को तो
गोद बिठाया है,
प्रकृति ने जो लोटा भर-भर
कल खूब नहाया है।
तूफान भी मंद पड़ा अब,
धूल उड़े न, धरती भीगी,
धरती के उस कीचड़ पर
कुछ कमल विराजे हैं।
पंछी अब हैं चाहचहायें
हंस तलैया तिरते जाएँ
सकारात्मकता अवि ने
मुट्ठी से लूटा दिया।
(तारक= तारा, पल्लव=पत्ता, मुक्तक=मोती, तलैया=तालाब, अवि=सूर्य)