मुस्तक़बिल
मुस्तक़बिल
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मजबूर बुढ़ापा
आज भी गलियों में धूल फांकता है
अब भी
कोई मासूम
किसी होटल पे गाली खाता है
अच्छा है के
हम
तरक्की के गीत गाते रहें
मगर....
कुछ फ़टी जेबों से
हिंदुस्तान का
मुस्तक़बिल झाँकता है !!!!!