मुहब्बतों से भरी निगाहें
मुहब्बतों से भरी निगाहें
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ज़माने में चाहता है हर दिल मुहब्बतों से भरी निगाहें।
पयाम लाती सदा खुशी का मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
कदम बढ़ा के ठिठक गया वो हैं वस्ल की घड़ियाँ हैं दूर अब भी
जो अब्र बरसे मिलें मुझे भी मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
जला गया आफ़ताब इतना कि जर्रा जर्रा सुलग उठा था
हरेक दिल चाहता गगन की मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
तड़प रहे सारे खेत जंगल तड़प रही जल बिना है धरती
ऐ अब्र अब तो इधर भी कर ले मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
पिघल गया आसमान का दिल लगा बरसते है खूब पानी
निहारती है जमीं को नभ की मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
फिसल रहीं आसमां की नज़रें वसुंधरा के तरसते तन पे
बरस रहीं झुक के झूम के हैं मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।
चला भी आ अब तो यार मेरे करम तेरा कुछ तो हो इधर भी
टिकी हुई हैं डगर पे अब भी मुहब्बतों से भरी निगाहें ।।