मुहब्बत की बातें
मुहब्बत की बातें
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कमतर सी होती हैं
यूँ गाहे गाहे की बातें,
तलब जगा जाती हैं
ये बेरुखी की रातें।
न शिकवे न शिकायत तो
बेवज़ह दिल की बातें,
तौहीन ए इंतज़ार है
यूँ मुख़्तसर सी मुलाक़ातें।
बेक़रारी की बरक़रारी
फ़ासलों की जब उल्फ़तें,
बेकार जश्नो महफ़िल
तन्हा है लोगों की सोहबतें।
मांगे से मिले मुहब्बत
तो समझो उसे ख़ैरातें,
ग़र बेदख़ली हो ख़यालों से
तो बेमतलब हैं सौगातें।
