मृत्यु
मृत्यु
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कुदरत की ये कैसी महिमा है
जहां मौत की कोई उम्र नहीं है।
ना कोई दरवाजा है
जो आने से पहले दस्तक दे,
यूं ही चुपके से आकर जिंदगी चुराना
क्या ये इंसाफ है खुदा का?
कौन, कब, कहां, कैसे अपनी जिंदगी से
अलविदा कह दे
ये सवाल बगैर जवाब के सांस ले रहा है
हमारे जीवन में
क्या ये न्याय है खुदा का?
माना की जन्म और मृत्यु
जिंदगी के दो पहलू है
फिर जन्म का वक्त निर्धारित क्यूं है
और मृत्यु बेवक्त क्यूं है?
खुदा का ये कैसा न्याय है
जहां अपने या अपनों की मौत
बस हो जाती है
बिना किसी शोर के।
