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Babu Dhakar

Others

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Babu Dhakar

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मंथन

मंथन

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परेशान मन 

पल पल में 

प्रेम पाने का 

प्रयास करता है ।


उदासी में नहीं 

कोई बना साथी

हया शर्म से 

हुआ पानी पानी । 


अपना कोई नहीं 

पर सब अपने है

ऐसा मन का समझाना 

मन को बहुत पडता है ।


मन में अखरता है कि परख नहीं थी 

सोने में कैसे चांदी मिल गयी थी 

पीले मन का सफेद में मिलान 

मन की आंखें क्यों नहीं देख पायी थी ।


मन की आंखें और मन की बातें 

अक्सर आमने सामने होती है 

मन की बातें और मन की आंखें 

मन ही मन मंथन करती जाती है ।


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