मंथन
मंथन
1 min
249
परेशान मन
पल पल में
प्रेम पाने का
प्रयास करता है ।
उदासी में नहीं
कोई बना साथी
हया शर्म से
हुआ पानी पानी ।
अपना कोई नहीं
पर सब अपने है
ऐसा मन का समझाना
मन को बहुत पडता है ।
मन में अखरता है कि परख नहीं थी
सोने में कैसे चांदी मिल गयी थी
पीले मन का सफेद में मिलान
मन की आंखें क्यों नहीं देख पायी थी ।
मन की आंखें और मन की बातें
अक्सर आमने सामने होती है
मन की बातें और मन की आंखें
मन ही मन मंथन करती जाती है ।
