मन की मुंडेर पर
मन की मुंडेर पर
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मन की मुंडेर पर
यादों के पंछी
करते हैं कलरव
अहर्निश
कुछ मीठी यादें
बस जाती हैं
कोयल की कूक में
कभी प्रेम पगी यादें
बन जाती हैं
पपीहे की पुकार
कभी भोर संग
चिंचियाती चिड़िया
माँ ज्यूँ आ जाती है
जगाने
वो नन्हा सा नीड़
बया का
याद दिलाता है
सावन के झूले की
मन उड़ जाता है
लेकर पंख
यादों के दरीचों में
जी लेता है कुछ पल
महके से, चहके से,
भूल कर कुछ पल को
वीरान सी तन्हाईयाँ
मुस्कुरा लेता है
कुछ क्षण
भूल कर सब ग़म
जो बन गए हैं जीवन का
एक रंग... बदरंग सा