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Ruchika Rai

Others

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Ruchika Rai

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मन की मणिकर्णिका

मन की मणिकर्णिका

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मन की मणिकर्णिका में निरंतर,

दहक रही है ज्वाला,

और धू धू करके भस्म हो रही हैं

रोज कुछ उम्मीदें।

लकड़ियों सी चटक रही हैं

कुछ सपने,

और संवेदनाओं की घी से

क्षत विक्षत हो रहा है ह्र्दय।


मन की मणिकर्णिका में निरंतर,

अतृप्त इच्छाओं का बोझ 

बढ़ता ही जा रहा है।

अकुलाहट और छटपटाहट

विरक्ति की राह खोज रहा है।

मगर मुक्ति का आसार दूर दूर

तक नजर नही आ रहा हैं।


मन की मणिकर्णिका में बस

चिंगारी उठ रही है।

और मोह का बाजार बढ़ता

ही जा रहा है।

धुँआ धुँआ सी उम्मीदें,

मन के गहरे तक को धुँआ 

कर रही है।


मन की मणिकर्णिका में गरल

जिंदगी का पीकर

खुद को मुक्त करने की 

चाह बढ़ती जा रही है।

संवेदनायें खुद को ध्वस्त कर रही हैं।

मन की मणिकर्णिका में

निरंतर दहक रही है ज्वाला।



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