ममत्व प्रकृति का
ममत्व प्रकृति का
उस दायरे में जहाँ बादल मिलते हैं,
उभरता है प्रकृति का स्वर-ममत्व।
अनुग्रह के मोतियों से धुलती है धरती,
उतरती है वर्षा, कोमल इक तत्व।
मटमैले आकाश से, झूलती हुई बूंदें,
नाचती पत्तों पे, चूमती हैं ज़मीन को ।
मल्हार की लयात्मक ध्वनि-तरंगें,
हर बूँद से संवारती हैं जीवन को,
बुझती है प्यास प्रकृति की,
दमकती हुईं हीरे सी सावन की बूंदों से,
और बुनती है प्रकृति ही,
सुन्दरतम-एक शांत लोरी ।
जीवन के कैनवास को रंगती श्रावण-बूंदे,
देती हैं जीवन को रूप नया।
धोती हैं अवसादों को, आत्मा को करती साफ,
होती है मासूमों की लापरवाह परेड।
ब्रह्मांड को ढकती हुई शांति,
एक रहस्यमय आनंद सी है,
जिसके आगोश के कोमल स्पर्श से दुनिया लगती है,
एक सत्य आशीर्वाद,
यह है...
एक काव्यात्मक नृत्य जो कभी बंद नहीं होगा।