मक्की की रोटी
मक्की की रोटी
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मां जब ,
मक्की की ,
रोटी बनाती
कभी साग,
कभी शलजम
के साथ
कितनी बार खायी,
पर वैसी रोटी ,
मुझसे कहां बन पायी।
मां जब ,
मक्की की रोटी बनाती
घी रख कर,
सबको खिलाती।
रोटी बनाती भी हूँ
रोटी खिलाती भी हूँ
उस स्वाद को,
उस चाव को,
आज भी याद कर,
रोटी में सहेज
लाती हूँ।
मां की ,
मक्की की रोटियां
याद करके,
खुद बना के,
खा लेती हूँ
खुद को उसी,
स्वाद में,
ढाल लेती हूँ।
