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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

Others

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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

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मेरी प्रेरणा मेरी किताब

मेरी प्रेरणा मेरी किताब

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बचपन के भी क्या दिन थे 

कोई अखबार लेकर पढ़ता था ,

कोई किताबो का पन्ना तो

कोई संदेश लेकर पढ़ता था ।


मै छोटी क्लास का बच्चा 

जब सीखा अ से अनार ,

वो मेरे पढ़ने की किताब 

ढूंढा उसको हर बाजार ।


वो पढ़ने की ललक 

वो याद करने की सबक बन गई ,

वो वर्णमाला की किताब 

मेरे पढ़ने की प्रेरणा बन गई ।


मेरे संग मेरे साथी 

कुछ दुबले कुछ हाथी ,

वर्णमाला की किताब 

हर किसी को मिल जाती ।


बड़े-बड़े विद्वान हुए 

पढ़-लिखकर महान हुए ,

लिख-लिख लेखक 

पढ़-पढ़कर पाठक हुए ।


याद करते हैं लोग

अपना उपन्यास अपनी कहानी ,

भूल गए बचपन की किताबें 

याद है बस नई किताबें नई कहानी ।


हर किताब की नीवं 

वर्णमाला की किताब है ,

जीवन में जिससे पढ़ना सीखा

अक्षर-अक्षर का यही हिसाब है ।


वर्णमाला की किताब 

जुबान पर हर अक्षर सजा देती है,

रहती है कागजो में 

अपनी लिखावट को आवाज देती है ।


बचपन के प्रेम का बन्धन है 

लबो पर रटने का मन्जन है ,

मेरी प्रेरणा मेरा जीवन 

मेरी सोच की कहानी है।


बच्चा-बच्चा पढ़ता है इसको

बड़ो-बड़ो की नादानी है ,

ये मेरे लेखन का औजार यही 

घर घर की यही कहनी है ।


बिन वर्णमाला 

ना जीवन किसी का 

ना साक्षर है कोई ,

वर्णमाला सदियों की निशानी 

इसके जैसा ना अनमोल कोई ।


  



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