मेरी प्रेरणा मेरी किताब
मेरी प्रेरणा मेरी किताब
बचपन के भी क्या दिन थे
कोई अखबार लेकर पढ़ता था ,
कोई किताबो का पन्ना तो
कोई संदेश लेकर पढ़ता था ।
मै छोटी क्लास का बच्चा
जब सीखा अ से अनार ,
वो मेरे पढ़ने की किताब
ढूंढा उसको हर बाजार ।
वो पढ़ने की ललक
वो याद करने की सबक बन गई ,
वो वर्णमाला की किताब
मेरे पढ़ने की प्रेरणा बन गई ।
मेरे संग मेरे साथी
कुछ दुबले कुछ हाथी ,
वर्णमाला की किताब
हर किसी को मिल जाती ।
बड़े-बड़े विद्वान हुए
पढ़-लिखकर महान हुए ,
लिख-लिख लेखक
पढ़-पढ़कर पाठक हुए ।
याद करते हैं लोग
अपना उपन्यास अपनी कहानी ,
भूल गए बचपन की किताबें
याद है बस नई किताबें नई कहानी ।
हर किताब की नीवं
वर्णमाला की किताब है ,
जीवन में जिससे पढ़ना सीखा
अक्षर-अक्षर का यही हिसाब है ।
वर्णमाला की किताब
जुबान पर हर अक्षर सजा देती है,
रहती है कागजो में
अपनी लिखावट को आवाज देती है ।
बचपन के प्रेम का बन्धन है
लबो पर रटने का मन्जन है ,
मेरी प्रेरणा मेरा जीवन
मेरी सोच की कहानी है।
बच्चा-बच्चा पढ़ता है इसको
बड़ो-बड़ो की नादानी है ,
ये मेरे लेखन का औजार यही
घर घर की यही कहनी है ।
बिन वर्णमाला
ना जीवन किसी का
ना साक्षर है कोई ,
वर्णमाला सदियों की निशानी
इसके जैसा ना अनमोल कोई ।
