मेरी गुल्लक
मेरी गुल्लक
मेरी गुल्लक ,छोटा भालू
छोटा मुँह ,मोटा पेटू।
चाबी से खुल जाता
मुझको बहुत ही भाता।
सबकी नज़र उस पर रहती
मैं सबसे उसे बचाता था।
सब पैसे मैं उसमें रखता
कभी न कुछ खर्च करता।
जब भरती मैं भरमाता
सीधा माँ के पास जाता।
खुल्ले पैसे उनको देकर
बँधे नोट लेकर आता।
माँ खुश हो इनाम देतीं
ज्यादा पैसे डाल देती।
माँ कहती चिंटू बड़ा सियाना
तेरी गुल्लक हमारा खजाना ।
मुसीबत में बड़े काम आती
अपार खुशी हमको दे जाती।
अब बड़ा हो गया हूँ
पर आदत से मज़बूर हूँ।
नानी की दी गुल्लक पास रखता हूँ
आदतन सिक्के भी वहीं डालता हूँ।
भरने पर बच्चों सा गिनता हूँ
स्वर्गवासी नानी को याद करता हूँ।
नानी का तोहफा है जिंदगी भर का साथ
मानो आशीर्वाद उनका हरदम मेरे साथ।
बड़ों की बातों से जो मिलता ज्ञान
होता अद्भुत यह सब लो जान ।
छोटी छोटी बातों में ,खुशियाँ बड़ी -बड़ी
देखूँ गुल्लक , दिखे नानी हँसती है खड़ी।
