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Tripti Dhawan

Children Stories

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Tripti Dhawan

Children Stories

मेरा गुल्लक

मेरा गुल्लक

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छोटे छोटे सिक्के लेकर

सपना बड़ा सजाते हैं


ये ही तो बचपन की बातें

फिर किस्से बन जाते हैं


कभी माँ से पांच रुपया

पापा दस दे जाते हैं


और टिक टिक करके

एक दिन फिर ये गुल्लक भर जाते हैं


कभी कभी राखी में फूटा

गुल्लक बहन का प्यार है


तो कभी कभी अपनी ख़्वाहिश

कोई सपना हुआ साकार है


बच्चों का गुल्लक भी करामात दिखता है

कभी कभी मुश्किल में ये भी

एक सहारा बन जाता है।


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