मदमस्त पवन के झोंके
मदमस्त पवन के झोंके
मदमस्त पवन के झोंके है
कलियों से सजी बारात है
फागुन दूल्हा के स्वागत में
खिलती ये ज्योत्स्ना रात है
तन मन वन कुंजन खिले खिले
महके मिलकर अमराई है
राधा व्यकुल कान्हा के लिये
व्यकुल राधा को कन्हाई है
सब रंगा हुआ है बासंती
बासंती पीला चाँद खिला
फूलों का रंग सुहाना है
हर उर में प्रीत का रंग घुला
अंतस धड़के राधे राधे
मन जपता अपना कृष्णप्रिया
तारकद्युति देख देख कर के
नयनों के संग है मुदित जिया
राकापति धवल चाँदनी ये
मुरली के संग ललचाती है
यमुना तट पर हर राधा को
अवगुंठन कर सकुचाती है
धरती दुल्हन सी लगती है
अलियाँ कलियों सी खिलती है
सरसो की पीली चादर ये
चाहत के सपन को सिलती है
शशि नन्हे बालक की तरह
नव रजत हिंडोला सजाता है
फागुन अपनी मस्ती के संग
मन मृदंग ये मानो बजाता है
दस दिशो चंद्रिका खिली खिली
यौवन से सुसज्जित धरती है
करने को गगन को मगन यहाँ
ये पुलक प्रकट जनि करती है
रंगीन मिजाज है फागुन का
रंगों का ये त्योहार लिये
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबकी खातिर है प्यार लिए।