मधुशाला २
मधुशाला २
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मुसलमान और हिन्दू का, यहाँ कोई भेद नहीं है
किसको मिला पहले हाला, इससे कोई खेद नहीं है
भुला मज़हब की दीवारें, साथ बैठते हैं सब
गम चाहे जो भी हो, साथ उठाते अपना प्याला
आमिर-गरीब, ज़ात-मज़हब से नहीं कोई यहाँ बाटने वाला
साकी, ऐसी है ये, मेरी मधुशाला।