मैं
मैं
तुम्हें राजुती करने का
अधिकार दिया था मैंने
मान रही थी सारे हुक्म
तुम्हारी छाया के नीचे
जकड़ गया था
मेरा सम्मान
बिना करवट लिए
प्रेम नर नारी के
एक युद्ध, आदर्शों के,
भ्रम के, कल्पना और विलास के
नष्ट हो जाता है दुर्बल
जीत ही जाता है बलवान
बूद्धि भी प्रबल हो जाती है
इच्छा शक्ति के साथ
पति और पिता के कर्त्तव्य
फिर
और क्या काम पुरुष के
बन्द है दरवाज़ा
कैसे रोकूं
आहट तुम्हारी हिंसक प्रकृति की
कोशिश है मेरी बार बार
अंकुरित होने के लिए
मगर काट दिया तुमने
जड़ को मेरी
सूख गई हूं मैं, मेरा अस्तित्व
सूखी रेगिस्तान है
ज़िन्दगी मेरी,
फिर भी, झांक रहा था
एक साया, सम्मान मेरा
अहिल्या हूं, सीता हूं, द्रौपदी भी हूं
क्रोध मत दिलाओ
वरना, गुम जाओगे तुम
खो जाएगा बुनियाद
और उस वक्त, करवट ले
रहा होगा
अन्य एक नया युग।