मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूं
मैं एक स्त्री हूं
मेरे रुप कई हैं
मैं बेटी हूं, बहन हूं
पत्नी हूं, जननी हूं, माँ हूं मैं
कोमल हूं, सौम्य हूं
सरल हूं, सहज हूं
हाय! परंतु भाग्य की
सताई हूं
दुर्भाग्य के झंझावातों से
बिखरी हुई हूं
जी तो सकती हूं अकेली
लड़ सकती हूं मैं अपने
भाग्य से
पर बंधी हूं अपने मातृत्व के
कर्त्तव्यों से
मेरे भीतर पलता है
एक जीवन
मेरा अपना लहू
मेरा अपना अंश
मेरा जीवन सहारा
मेरी दुनिया, मेरा संसार,
मेरा सबकुछ
किंतु मैं अकेली बेसहारा
न कोई परिजन
न जीवन साथी
और न कोई सहारा
सिवाए मेरी चट्टानी हिम्मत के
स्वयं तथा नवागत संतान के
जीवनयापन के लिए
करती हूं मेहनत जी-तोड़
उठाती हूं बोझ ईंट
पत्थरों का
जलती धूप में तपकर
बारिश में भींग कर
शीत की लहरों में डूब कर
भाग्य के तुषारापात सहती हूं
विचलित नहीं होती हूं मैं
मैं भी धरती माँ की तरह ही हूं
समर्पित और शोषित
होती है तकलीफ़ बहुत ही
पर सहती हूं हर दर्द तकलीफ़
अपने होने वाले संतान के लिए
उसके सुखद भविष्य के लिए।
