मैं शहीद कहलाऊँगा
मैं शहीद कहलाऊँगा
मिट्टी से लगाव है
मेरी प्रियतमा!
है कुछ फर्ज करना पूरा
बाँध पगड़ी सिर पर फिक्र की
जाना है मुझे दूर
मेरी प्रियतमा!!
प्रीत तेरी नैनों की
रोज़ याद आएगी
घुला कजरा तो
रात और गहरी हो जाएगी
फिर भी मुझे सोना होगा
पत्थरों की सेज पर
प्यार वतन से होगा
मेरी प्रियतमा!!
जो सुरूर छाया है नस नस में
गीत बनकर गूँजता रहेगा
बंदूकें ओ कमान की
जश्न भी चलता होगा
पर मैं ना गुनगुनाऊंगा
सुन दहाड़ें बारूदों की
उनसे दिल लगाना होगा
मेरी प्रियतमा!!
देख चाँद मैं बहक जाऊँगा
रुप की नूर बरस जाएगी
जब चाँद उतरेगा आसमां पर
ज़मीन पर रेत का ढेर लगाऊँगा
मेरी प्रियतमा !!
देख परछाई दुश्मन की
साया तुम्हारा छोड़ना होगा
आस दर पर होगा खड़ा
खून से लिखना होगा
दास्तान-ए-जंग
मेरी प्रियतमा!!
ऋतुओं की खुशबू
याद तुम्हारी दिलाएगी
वह नहर पर छुप के मिलना
तन को बड़ा जलाएगी
भुलाकर वह एहसास
सरहद पर
जान बिछाना होगा
मेरी प्रियतमा!!
रखो सम्हाले इन आँसुओं को
शहीद मैं कहलाऊँगा
ओढ़ माँ का आँचल शान से
फख्र से सो जाऊँगा
सोचोगी तब तुम
क्या है पाया खोकर मुझे
शिद्दत से सीने से लगाना
मेरी प्रियतमा!!