मैं गंगा
मैं गंगा
भागीरथ के तप से
प्रसन्न होकर मैं गंगा
बहकर धरती की और चली
मेरा तेज रोकने के लिए
शिवजी ने अपनी जटाएं खोली
बंधक बन जटाओं से मैं गंगा।
शीतल मन से बह निकली
पर्वत, पेड़, पठार
सूखे खेत और मैदान
सबकी प्यास बुझाती हुईं
सगर पुत्रों का उद्धार किया।
सबके पाप मिटाती चली
भागीरथ के तप से प्रसन्न हो
भागीरथी मेरा नाम पड़ा
सागर से गंगा का संगम
धरती का पावन तीर्थ बना
गंगासागर युगों-युगों से
भक्तों का करता उद्धार
संगम यह गंगा-सागर का
सबसे पावन स्थान बना।
त्रिवेणी संगम पवित्र तीर्थ
जहां हम तीन पवित्र
नदियों का संगम है
गंगा, जमुना, सरस्वती का
मिलता यहाँ पावन स्पर्श है।
संगम यह आस्था का
हम नदियों की पहचान है
युगों-युगों से इसकी
महिमा का चहुंओर बखान है
देश क्या परदेश में भी
महिमा इसकी फैली है
दूर-दूर से दर्शन के लिए
आती भक्तों की रैली है।
