मैं बचपन और मांँ
मैं बचपन और मांँ
आज तख्ते पर पलट एक तस्वीर
गिरी नजर आई,
छू कर देखा तो उसपे ठहरी धूल
जमी नजर आई,
आज फिर कही अरसे से खोई अपनी,
बचपन और मांँ की यादें नजर
आई,
वो सोंधी मिट्टी की खुशबू, वो मांँ
का निश्छल प्यार,
बहुत तड़पाते हैं मुझको मेरे यार
मांँ ये तस्वीर बहुत कुछ बंया करते है,
ये चुप रह कर भी हजार सवाल
करते है,
वो खाने को लेके तेरा बहुत चिंता
करना,
शरारत करने पे तेरा वो काकू का
डंडा लिए दौड़ना,
नीले रंग का कच्छा पहन मेरा
गांव में दौड़ना,
लाल रंग के सूट में मांँ तू कितनी
प्यारी लगी है,
माँ साक्षात तू दुर्गा भवानी लगी है,
मांँ ये तस्वीर बहुत कुछ याद दिलाए है,
मुझे आज फिर अपना बचपन
याद आए है,
इसमें तू सोने का चैन पहने नजर
आई है,
हस्ती मुस्कुराती खूबसूरत नजर
आई है,
करवा चौथ का वो पवित्र दिन था
मैं भी उस दिन नए नीले कच्छे में
था ,
पापा ने उपहार में सोने का चैन
भी दिया था,
तूने इसी दिन मुझे खाने पे भी
बुलाया था।
मेरे शरारत करने पे, तुमने मुझे
दौड़ाया भी था।
कितने सुकून के पल थे वो मांँ
ना कल की फिक्र ना कोई
जिम्मेदार थी माँ
वो खोई हुई बचपन फिर से आने
लगीं थी
आज अपनी बचपन की तस्वीर
देख आंशू आने लगी थी।
मुझे अपनी स्वर्गवासी मांँ याद
आने लगी थी।
कहा गई मांँ आज जब कभी
गिरता हूँ तो कोई उठाता नही है
मेरे दर्द ए गम में मुझे सीने से कोई
लगाता नहीं है।
काश कभी कुछ ऐसा होता हम
तस्वीर में खो जाते ।
तस्वीर छूते ही फिर से उस बचपन
में लौट जाते।
