मैं अंधा
मैं अंधा
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मैं अंधा हूँ
पर समाज है क्या?
मैं सोया हूं
तो जागृत हैं कौन?
मैं गिरता चलता सम्हलता हूं
पर इस दुनिया को सम्हाले कौन?
मेरा सहारा मेरी लाठी है
पर इस दुनिया की लाठी बनेगा कौन?