मैं अक्सर चुप रहती...
मैं अक्सर चुप रहती...
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मैं अक्सर चुप रहती हूँ...
सुनती सबके ताने-बाने...
अपनी कहती तो सब यहीं कहते
तुम्हें क्या पता?
बाहरी दुनिया तुम क्या जानो ?
अपने घर की लक्ष्मण -रेखा को पहचानो
अपने बच्चों में मशगूल रहो तुम..
उनकी दुनिया में महफूज रहो तुम...
हमने तुम्हें समझाना चाहा...
नये जमाने के बारे में बताना चाहा...
तुमने मेरा मजाक उड़ाया...
मेरी बात को हवा में उड़ाया..
मैंने तेरी बात को समझा...
इसलिये मैं अक्सर चुप रहती हूँ।
