मैला आँचल
मैला आँचल
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मैले आँचल की व्यथा
कोई समझ न पाया।
सबने माँगा साक्ष्य पर
न्याय नहीं दिलाया।
विपदा जिसपे बीती है वो
सुध-बुध अपनी खोई है।
मत पूँछो कब, कहाँ और कैसे
खुद जवाब कहाँ वो पाई है।
इक पीड़ा तो मन पे छाई
दूजी हेय दृष्टि ने बढ़ाई।
न्याय के लिए कई बार वो
वही यातना फिर है पाई।
खुले घूमते दानव हैं वो
जश्न करें उस बर्बादी का।
रुतबे और दमन के बल पे
मोल करें है गरिमा का।
न्याय की देवी जाग्रत हो
अब नाश करो हैवानो का
पावन आँचल दाग सहे क्यूँ
छल,कपट,व्यभिचार का।
कोमल मन को छलने वाले
अब सबक वो हमसे पायेंगे।
किसी मासूम का आँचल वो
अब मैला नहीं कर पायेंगे।
