मारा है
मारा है
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मुझे गैरों ने नहीं अपनों ने मारा है
मुझे गोलियों ने नहीं बोलियों ने मारा है,
अब भला और किससे मैं दिल लगाऊं
मुझे शूलों ने नहीं फूलों ने मारा है,
दर्द की अब तो इंतहा हो चली है
मुझे जहर ने नही किसी के वहम ने मारा है,
में क़भी खिलखिलाकर हंसा करता था,
मुझे आंसू ने नही स्वयं की हंसी ने मारा है,
सबसे कह रहा है ये साखी,
सुन ले सब कान खोलकर
मुझे मौत ने नहीं बुजदिल ख़यालों ने मारा है।
