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Zahiruddin Sahil

Others

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Zahiruddin Sahil

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मानसून

मानसून

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ये इत्तिला, एहसास ने दी मेरी आँखों को

ऐ मरीज़-ए- मुहब्बत ! मानसून आने वाला है


सब्र -ओ- ज़ब्त की चौखटें मजबूत रखो ! 

इस बार तूफान-ए-दर्द, जाने क्या करने वाला है?


चला तो है झूम के वो जुदाई की हवा के साथ 

बस, पल दो पल में ! तुम तक पहुँचने वाला है


कसमो-वादों के आँगन में नमकीन फुहार पड़ेगी 

हंसता- गाता दिल, अचानक से रोने वाला है 


न मालूम कहाँ से गिरने लगें आंसुओं की बूंदें

पलकों से रूह तलक, चुप्पियों का तिरपाल डाला है


ऐ प्यार के पंछी ! छोड़ दे इन उदास शाखों को 

अरे पगले ! इन बारिशों में तेरा घोंसला उजड़ने वाला है


सारी रात बरसती रही यादों की खट्टी मीठी बारिशें 

सुबह होते होते दिल का हर ज़ख्म खिला डाला है


धुलकर, साफ सुथरे से लगने लगे हैं सारे दर्दो-गम

मानसून! तूने छिपी हुई उदासियों को बेलिबास कर डाला है 


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