" मां "
" मां "
मैं तुम्हें सोचता हूं मां
जब खाली दोपहर में अकेले ही बोल पड़ता हूं
मैं तुम्हें सोचता हूं मां आधी नींद में जिस भी ख्याल से बिस्तर टटोलता हूं
मैं तुम्हें सोचता हूं मां और सोचता हूं कि कोई उस काजल की मिसाल भी क्या देगा, जुल्फों की छांव में सांस क्या लेगा हातों का जिक्र भी किस हैसियत से हो, तुझे जन्नत का बताया तो भी क्या होगा इस सबके अलावा जब कोई वादे निभाने की बात करता है जब दुनिया का उसूल साथ की बात करता है तब भी मैं तुम्हें सोचता हूं मां
जैसे चिड़ियों सी चहकती सी सुबह या डांट देना किसी अपने की तरह किसी बच्चे की खिलखिलाती सी हंसी टूटे खिलौने के जुड़ जाने का लम्हा वैसे गहरी नींद में जब आहट से चमकता हूं
तब भी मैं तुम्हें सोचता हूं मां
जब कोई किस्सा दुनिया से लड़ जाने का चलता है मैं तुम्हें सोचता हूं मां
या जब कोई चांद की बात करता है
मैं तो मैं सोचता हूं मां।
