माँ सरस्वती वंदना
माँ सरस्वती वंदना
श्वेत वसन में आभा तेरी, उज्ज्वल जैसे सूर्य प्रकाश,
हाथों में वीणा की तान, ज्ञान का यह दिव्य आकाश।
सृष्टि के आदिकाल से, था जब केवल अंधकार,
ब्रह्मा ने तुझे रचा, दिया था सृजन को आकार।
नाद, कला, विज्ञान की साधिका, शब्दों की जननी है तू,
संस्कृत की पहली स्वर लहरी, वाणी की ज्योति है तू।
न शृंगार, न लालसा कोई, बस शिक्षा है तेरा धन,
विद्या, बुद्धि, विवेक की देवी, मिटाए मोह का स्वप्न।
हंस तेरा विवेक का द्योतक, मोर सिखाए है संयम,
जो भी तुझसे सीख ले, पाए है ज्ञान का परचम।
बसंत की पीली चादर ओढ़े, जब धरा तुझे वंदन करे,
वीणा की झंकार से माँ, हर मन में स्वर अंकित करे।
तेरी साधना जो करे, वही जीवन में आगे बढ़े,
तू ही केंद्र, तू ही धुरी, जुड़ ज्ञान से सत्य लड़े।
हे वाणी की देवी, हमें भी तेरा आशीष मिले,
शब्दों में मधुरता रहे, और विचारों में शुद्धि खिले।