मान सरोवर
मान सरोवर
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वो किताब !
जिसे मैं पढ़ नहीं रहा था
वो मुझे खुद पढ़ा रही थी
पन्नों पर पन्ना
शीर्षकों पर शीर्षक
अध्यायों पर अध्याय
मेरी जिज्ञासु आँखों के सामने
पेश करती जा रही थी
और मैं
उसकी गहराई मे
डूबता ही चला जा रहा था
अनेकों साहित्य रसों मे
लिपटता जा रहा था
जो मेरी साहित्य ज्ञान मे
मिठास भर रही थी
और मेरे इल्म की स्रोतों को
तेज कर रही थी
उस साहित्यकार की
साहित्य मे काफी गहराई थी
जिससे बाहर मैं
निकल नहीं सकता था
और निकलना भी
नहीं चाहता था
एक दिन ऐसा आया के
बो किताब ख़तम हो गया था
और मैं शुरू हो गया था।