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Dayasagar Dharua

Others

5.0  

Dayasagar Dharua

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लवणान्नम्

लवणान्नम्

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बात है ये बचपन की

बारह साल पहले की,

घर से दूर, घर वालों से दूर,

बीच जंगल के एक गुरूकुल में

मैं और मुझ जैसे कई और

भरती करवा दिये गये थे,

उस वैदिक विद्यापीठ में।


वहाँ की पढ़ाई बहुत अच्छी थी

बस हम पढ़ते नहीं,

पढ़ाई के अलावा

वहाँ बाकी के काम भी

सिखाये जाते थे,

पर हमें उसमे रूचि नहीं.

भोजन मे कोई कमी नहीं थी,

बस उसी के लिये श्रृंखला में

रहना हमे मंज़ूर था।


अगर श्रृंखलित हैं

तो ही खाना मिलेगा,

अथवा दिन भर भोजन बन्द।

वहाँ नमकीन चावल मिलता था

लवणान्नम् जिसका संस्कृत नाम था

जो सबकी पसंदीदा खाना था।

एक दिन मेरी लडा़ई हो गयी

मुख्य आचार्य जी तक

हमारी शिकायत पहुँच गयी,

फिर हम दोनों लड़ने वालों का

भोजन बन्द किया गया पूरे दिन का।


भूख के मारे नींद नहीं

आधी रात तक संभाल लिये,

अब झेला आगे जाता नहीं,

फिर हम दोनों ने

पाकशाला की चाभी चुराई,

अंदर घुस कर

नमकीन चावल पकाया,

फिर पेट भर कर हमने खाया,

पाकशाला को वापस सजाया.

सुबह नौ बजे तक

आ कर सो गये हम बेझिझक,

अब जब

याद उस पल की आती है,

आँखों के आगे नमकीन चावल

और उस रात की घटना

छा जाती है।


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