लकीरें

लकीरें

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अपनी ही हथेली पर

खींची हुई लकीरों में

कैद हो कर

छटपटाती हूँ कितना ।।


काश आ जाये कोई

रावण

भेस बदल कर

भिक्षा मांगे,

साधु बन कर

और

फिर इंकार कर दे

बंधी भिक्षा लेने से ।।


अपनी ही हथेली की रेखा

लक्ष्मण रेखा लांघ कर

बाहर आ जाऊँ,

और आज़ाद हो जाऊँ

एक मुट्ठी

फल दे कर ।।



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