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अच्युतं केशवं

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अच्युतं केशवं

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लाॅली पाॅप लिए धूप

लाॅली पाॅप लिए धूप

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लाॅली पाॅप लिए धूप

ड्योढ़ी पर बैठी

हाऊ चाॅकलेटी

वाऊ चाॅकलेटी ।


रात फिर चकोरी ने ,

चंदा को टेरा.

किन्तु वह लगाता था ,

धरती का फेरा .

धरती की आँखों में ,

बादल के सपने .

यह जानते हुए भी ,

प्यार किया हमने .

मैं धरा का बेटा ,

वो अम्बर की बेटी .

हाऊ चाॅकलेटी

वाऊ चाॅकलेटी।


बौराने आम बहे

खुशबू के झरने,

कमलों से भ्रमर लगे

छेड़छाड़ करने

खिलखिलाते झुण्ड में ,

रौनकें बाग़

तितलियों से भर गईं

गलियाँ गुलाब की,

मखमली गलीचे पर,

सरसों है लेटी

हाऊ चाॅकलेटी

वाऊ चाॅकलेटी ।


माघ जब निवाय जगत

प्रीति में नहाए ,

अँखियन की राह पिया

हिया में समाए,

बासंती सम्मोहन

जलथल बंध जाय,

रचयिता रघुवंश के

शाकुंतल गाय,

महुआ की छाँह तले

मादकता बैठी ,

हाऊ चाॅकलेटी

वाऊ चाॅकलेटी ।


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