कविता- जज्बा वतन परस्ती
कविता- जज्बा वतन परस्ती
ज्वाला ज़ज़्बात वतन परस्ती न यूं बयान होगी
कर मुकाम हासिल पहले हिन्द सलाम होगी
दौलत न जागीर न परवाह तख्तो ताज दिवानों
मिटाना हस्ती वतन शहादत सर अंजाम होगी
न गुल न गुलबदन न गुलशन की चाह जवानो
लहू हिन्द मांगता शहादते वतन मुकाम होगी
है खौलता खून देख खोदते कब्र अपनों वतन
जंगे ऐलान दोनों दुश्मनों गद्दारो घमासान होगी
लगा नारा हर हर महादेव दुश्मनों सावधान करो
घेरा अंदर बाहर चौबन्द हिफाजत आवाम होगी
बिरो महाबीरों शहीदो धरा चरण बंदन करो जरा
पहले लिपटने तिरंगा काम दुश्मनों तमाम होगी
जय हिन्द जय भारत भाव देशभक्ति युवा जगाता
कुर्बानी राष्ट्र भक्ति हमारी माँ भारती महान होगी
