कवि - शुमो
कवि - शुमो
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रुकाते थे हम शीशों को
जो हमारे हाथों में होते
उफ़्ज
जला दिया शीशों को
जब तोड़ने में भी कामयाब नहीं रहते
कवि - शुमो
