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Alok Singh

Others

5.0  

Alok Singh

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कुछ ज़िन्दगी कुछ रिश्ते

कुछ ज़िन्दगी कुछ रिश्ते

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ज़िन्दगी में कच्चे धागों से बंधे मज़बूत रिश्ते

तो कभी मजबूत धागों से बंधे कच्चे रिश्ते,

बन कर फल कभी

थोड़े कच्चे तो कभी थोड़े पक्के,

लटकते अधटूटी टहनियों से

दिखावी रिश्ते।


कभी जज्बाती तो कभी बनावटी

कभी दिल के तो कभी मन के,

कभी धन के तो कभी तन के

कभी करवटों में बदलते पुराने रिश्ते,

ज़िन्दगी में कच्चे धागों से बंधे मज़बूत रिश्ते,

तो कभी मजबूत धागों से बंधे कच्चे रिश्ते।


कभी राहों में कभी मंजिल पर

कभी भीड़ में कभी तन्हा दरख्तों पर,

बादलों जैसे उमड़ते घुमड़ते

अपनी मर्जी से बरसते रिश्ते,

ज़िन्दगी में कच्चे धागों से बंधे मज़बूत रिश्ते,

तो कभी मजबूत धागों से बंधे कच्चे रिश्ते।


कभी धूप तो कभी छांव

कभी मजबूत इरादे तो कभी कांपते पाँव,

कभी मर्मस्पर्शी छुवन

तो कभी दिमागों के ख्यालों पर

कभी जानेपहचाने तो कभी अनजाने घाव,

कभी पिघलते रिश्तों की गर्मी में खुद रिश्ते।

कभी मरहम तो कभी दवा

कभी दुआ तो कभी नमाज़ों में शामिल रिश्ते

ज़िन्दगी में कच्चे धागों से बंधे मज़बूत रिश्ते,

तो कभी मजबूत धागों से बंधे कच्चे रिश्ते।


वो रिश्ते तो ज़िंदगी से बन गए हैं

वो ज़िंदगी जो रिश्तों में बदल गए हैं

वो रिश्ते जो गुड़ की मिठास से हो गए हैं

वो रिश्ते जो मिर्च की कड़वाहट से हो गए हैं

वो सब रिश्तों को ज़िंदगी का शुकराना है

कैसे भी हो रिश्ते ज़िंदगी का साथ तो निभाना है।



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