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Mayank Kumar

Others

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Mayank Kumar

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कुछ दिन बीत गए

कुछ दिन बीत गए

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कुछ दिन बीत गए

उत्सव की भांति !

रात जैसे याद

सपनों की भांति

बीत गए दिन रोज़

अमावस्या की भांति


कुछ दिन बीत गए

ऋतुओं की सांची


आप में हम बीत गए

सावन की भांति

रोग- बला ठिठकी

कमजोर बदन सिसकी !


डॉक्टर मुझे दिख रहे

शत्रु की भांति

कुछ दिन बीत गए !


शक है रोगी हम

दुष्यंत की भांति

चाँद जैसा दाग है

सुंदरता में अड़चन

लेकिन

बात वहीं अटकी

रोगों से ग्रसित हम

पर देख वहां खड़ा

कौन है ?

दवा लिए हाथों में

लगता है कृष्ण वहां

मुझ को बुलाते हैं

देख मेरी आँखों को

कितना भावुक यह

श्याम के दर्शन को !


रोग - बला भस्म हुई

पितांबर की माया से

मैं भी प्रफुल्लित उठा

एक बालक की भांति

पर

कुछ दिन बीत गए !!



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