कुछ दिन बीत गए
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कुछ दिन बीत गए
उत्सव की भांति !
रात जैसे याद
सपनों की भांति
बीत गए दिन रोज़
अमावस्या की भांति
कुछ दिन बीत गए
ऋतुओं की सांची
आप में हम बीत गए
सावन की भांति
रोग- बला ठिठकी
कमजोर बदन सिसकी !
डॉक्टर मुझे दिख रहे
शत्रु की भांति
कुछ दिन बीत गए !
शक है रोगी हम
दुष्यंत की भांति
चाँद जैसा दाग है
सुंदरता में अड़चन
लेकिन
बात वहीं अटकी
रोगों से ग्रसित हम
पर देख वहां खड़ा
कौन है ?
दवा लिए हाथों में
लगता है कृष्ण वहां
मुझ को बुलाते हैं
देख मेरी आँखों को
कितना भावुक यह
श्याम के दर्शन को !
रोग - बला भस्म हुई
पितांबर की माया से
मैं भी प्रफुल्लित उठा
एक बालक की भांति
पर
कुछ दिन बीत गए !!