कसूर क्या था मेरा
कसूर क्या था मेरा
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उड़ रही थी मैं चिड़िया खुले आसमान में।
उड़ती पतंग ने काट दिए पंख मेरे भरे आसमान में।
गिर पड़ी फिर मैं धरती , पे बेबस भीड़ के तूफान में।
कोई भला मानस उठा ले मुझे बचा ले जान मेरी।
सोचो यह परेशान में क्या कसूर था मेरा।
उड़ रही थी मैं चिड़िया खुले आसमान में।