कृष्ण
कृष्ण
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कृष्णा तू ही बसा मेरे मन के दर्पण में,
कृष्णा तू ही बसा सृष्टि के कणकण में l
मथुरा से गोकुल जा पंहुचा तू क्षण में,
बसता है संसार तुम्हारे चक्र सुदर्शन में l
महा रास रचाया तुमने वृन्दावन में,
पूरा संसार दिखाया अपने मुँह में l
इस जग का यथार्थ बताया गीता में,
महाभारत ख़त्म कराया अट्ठारह दिन में l
बसे प्राण तुम्हारे राधा और रुक्मणि में,
रखी मैत्री एक सुदामा और एक अर्जुन में l
बने सारथी नटवरनागर धर्महित रण में,
तुम रमे बांसुरी में और हमसब उसकी धुन में