कर्फ्यू- एक कड़वा सच
कर्फ्यू- एक कड़वा सच
सच है ना,कितना कुछ बदल दिया ,
इस इक दिन के कर्फ्यू ने,
कुछ नया नहीं था मगर
बहुत कुछ पहली बार ही तो हुआ।
वो नानू को साथ बैठ मुस्कुराते देखा
तो,नानी को खूब बातें बनाते देखा,
वो पापा को सुबह की चाय बनाते देखा
तो माँ को चैन से, देर से उठते भी देखा ।
वो बच्चों को अपनो संग ख़िलखिलाते देखा
तो भाई को घर मे हाथ बटाते भी देखा ।
वो बहन को अपने जन्मदिन पर खुश होते देखा
तो दीदी को घर में ओरियो केक बनाते भी देखा ।
वो पड़ोसियों का छत पर मेला भी देखा तो
तो अपनो का थाली,घण्टी का खेला भी देखा ।
वो डर के साए में, अविस्मरणीय संयम भी देखा
तो देशभक्ति का हर किसी मे ज़ज्बा भी देखा ।
वो सीमा प्रहरी बन खड़े शूरवीरों को देखा
तो लाल किले पर , जीपों का रेला भी देखा ।
वो झुग्गी बाहर प्लेट बजाती, मईया भी देखी
तो सड़क पर अकेले ही ताली बजाता बाबा भी देखा।
वो नेताओं को देखा,अभिनेताओं को भी देखा
तो व्हीलचेयर पर बैठे बुज़ुर्गो का हौसला भी देखा ।
देखा बहुत कुछ था इस ज़िन्दगी में हम सबने,मगर
पहली बार इतिहास अपनी आंखों से बनते भी देखा ।