कोरोना
कोरोना
नहीं आजकल घर में
कोई अफ़रातफ़री नहीं है
नहीं आजकल गर्मियों की
भी छुट्टी नहीं है।
मगर सब सुबह के जागे हुए है
नहा धो कर पूजा में साथ हुए हैं।
सुन्दर सा है माहौल मेरे घर का
कोरोना की विपदा मे भी अचल सा।
दादा के संग अखबार बाँचते पापा
बेटे का खिलौना भी पकड़े हुए हैं
बेटा देख रहा है वो जादुई उंगलियाँ
जिससे पापा चाबी भर रहे हैं
चल दिया खिलौना ले भागा है बेटा
दादी के कमरे मे करतब दिखाने
बूढ़ी सी दादी का दुलार पाने।
माँ, दादी के पैरों की मालिश में लगी है
कोरोना से एहतिहात बताने में लगी हैं
दीदी वहीं सुनती बाल सुलझाने में लगी है
भैया को भी कोरोना में दिलचस्पी बढ़ी है।
बजी डोर बेल पापा उठे हैं
देख किसी को हतप्रभ हुए हैं।
सुनो, दरवाज़े पर बाई खड़ी हुई है
अब दादी ने अन्दर से आवाज़ दी है
बाई की छुट्टी कर दो अभी से
कुछ दिन न आए कह दो उसी से
माँ बोली पगार उसकी खाते में दे देना
वो तब तक न आये जब तक है कोरोना।
कोरोना है भयानक ये कड़वा सा सच है,
मगर हमने इस से पार पाना अवश्य है
अपना कर अपनी संस्कृति परम्परा
कोरोना से सबको बचाना ही लक्ष्य है।
