कोरोना महामारी
कोरोना महामारी
अदृश्य वायरस विश्व पटल पर, आया है,
लाचार, प्रबल मानव को हमने पाया है,
ग्रह नक्षत्र को जिसने सहज ही, खोजा है,
अपने ही घर में कैद, आज हो आया है,
अमर जिन्हें होने का गौरव, था खुद पर,
खौफ मौत का, हर एक नजर में छाया है,
बन्द पड़े हैं, पिकनिक के सारे स्थल,
खिड़की से ही, आज भजन भी गाया है,
देवालय सब शांत पड़े हैं, कोलाहल कम,
ऐसा मंजर, भगवान को भी अब भाया है,
मस्जिद से ग़ायब, सब शोर मचाने वाले,
शांत अजान आज ख़ुदा ने, खुद गाया है,
चर्च की चर्चा नहीं,आज है जन जन में,
ईशु को घर बैठे हीं, चिंतन में पाया है,
गुरुद्वारों के बंद द्वार हैं, आज यहाँ,
गुरु की महिमा, सबने घर से हीं गाया है,
जंगल के प्राणी सब हैं, निर्विघ्न घूमते,
मानव विहीन, जंगल को उसने पाया है,
सड़कों पर लोगों का था, अंबार दीखता,
आज सफर विरान, सड़क को पाया है,
जीवों को तलकर, खाने की थी होड़ मची,
आज प्राकृतिक भोजन, सबको भाया है,
नगर ग्राम सब आज यहाँ, घायल दीखते,
कोरोना ने, भीषण उत्पात मचाया है,
मानव विहीन करने की, धमकी जो देते थे,
अस्तित्व बचानें की चिंता में, घबराया है,
प्रकृति स्वरों में जहर बो रहे, जो खुलकर,
विकसित देशों को, रोते चिल्लाते पाया है,
होड़ मची थी, प्रकृति रौंद आगे बढ़ने की,
तुच्छ केरोना के आगे, सब घबराया है,
चीन, जापान, इटली, ईरान, आदि देशों को,
दफ़न कब्र में नहीं, शव जलाते पाया है,
अब भी चेतो मनुज, प्रकृति से मत खेलो,
इस घटना से सीख, सदा जीवन में ले लो,
प्रकृति की इज़्ज़त करो, सदा वो देती है,
अति होने पर, सहज छीन सब लेती है,
लोभ यदि बढ़कर, अंबर को छू लेगा,
प्रकृति के मृदुल पल्लवों को, यदि तू रौंदेगा,
हस्र मनुज की विलुप्तप्राय जीवों में होगी,
प्रकृति सदा सक्षम है, सत्ता और को देगी,
जीव अनगिनत, पड़े हुये हैं पथ रण में,
तुझसे नहीं, प्रकृति से तू है हर क्षण में,
बहुत काल तक नहीं तेरा अस्तित्व यहाँ,
सहज सरल कर मानव तू, व्यक्तित्व सदा,
कुछ जीवों को अहं, यहाँ पर हो आया था,
डायनासोरों को, प्रकृति ने रौंद मिटाया था,
थोड़े से अब चेत, सम्हल जा ऐ मानव,
बहुत कर लिया मनमानी, बनकर दानव।
