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Dr Jogender Singh(jogi)

Others

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कोका बेदाग़

कोका बेदाग़

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तेरे कोके का वो सफ़ेद काँच,

सतरंगी हो चमक जाता जब/ तब।

गुलाबी चाँद पर, सतरंगी सितारा जैसे,

अलपक देखता, नाक की कील ( कोका ) को,

या उस सतरंगी लकीर को,

जो तेरे बायें गाल पर बन जाती।


बिन झिझके देखती मेरी आँखो में तुम,

नज़र मेरी, मगर झुक जाती।

पागल ही हो, कह दूर तुम हट जाती।


हँसी निर्दोष तेरी और हँसी सी, तुम भी।

दुनिया मगर, क्या क्या क़िस्से बनाती।



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