कलम
कलम
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चलती रही कलम,
कहती रही कलम,
अब सब जाग जाओ,
भेदभाव त्याग के।
कलम करे पुकार,
छोड़ तू बुरे विचार,
जलेगा यूँ कब तक ,
दुश्मनी की आग से।
कलम की स्याही बहे,
प्रेमरस लिए नित,
स्वरों को सजा लो तुम,
प्रेम रूपी राग से।
कोशिश कलम की है,
मन का मिटे ये मैल,
एक बने रहें तब,
जाग पाए भाग ये।