किताबों की धूल
किताबों की धूल
किताबों की धूल अब उड़ने लगी है
एग्जाम की हवा जो चलने लगी है
खत्म हो गये है, अब मस्ती के दिन,
दिल की धड़कनें अब बढ़ने लगी है
कब एग्जाम होंगे, हम कब मुक्त होंगे,
सोचकर रातों की नींदे उड़ने लगी है
किताबों की धूल अब उड़ने लगी है
सर पे जो तलवार लटकने लगी है
खास की साखी रोज़ तू पढ़ा करता,
महफ़िल में खुद को यूँ न तन्हा करता,
आलस्य की गलती दिखने लगी है
किताबें देख बुखार बढ़ने लगी है
पर अब पछताने से क्या होगा,
होगा वही जो मंजूरे खुदा होगा
जुट जा अब बस तू तेरी तैयारी में,
भूल जा नींद पढ़ लक्ष्य खुमारी में,
किताबों से सीख मिलने लगी है
आगे से हमेशा याद रखना तू,
रोज का खाना रोज खाना तू,
फिर किताबों से रोशनी मिलेगी
बंद चरागों से भी ज्योति मिलेगी
पछतावे से गलती दिखने लगी है
अब किताबें मुझे सुधारने लगी है
किताबों पे अब न ज़मेगी धूल,
इनसे जो जिंदगी संवरने लगी है
